खुशमिजाज़ ये मौसम
न जाने कब भड़क जाये,
कभी बादल बन बरस जाये,
कभी बिजलियों सा कड़क जाये।
एक ओर वो झोपड़ी,
जिसको भय है बह जाने का ।
एक ओर वो महल,
जिसको भय न ढह जाने का ।
अम्बर से बरसे अमृत ऐसे,
बारिश की बूंदों से मिट्टी महक जाये ।
जिसकी भीनी सी खुशबू
कब दिल में धड़क जाये ।
खामोश था जो आस्मां
अब इन्द्रधनुष से दमक जाये ।
गरजते बादल और ये बारिश,
सावन को सुरमय बनाने की
जैसे खुदा की हो कोई साजिश ।
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