बचपन के दिनों में
पापा के दिलो में
हमेशा ही रहा
उन बीते साहिलों में
किस्से कहानियाँ तो बहुत है सुनाने को
वक़्त कहा लफ़्ज़ों में बतलाने को
शब्द भी कम पड़ जाएँगे लिखने को
कुछ लम्हे मिल जाये अतीत में जाने को
जी चाहता है
फिर से जी सकूँ उस जमाने को
जी चाहता है,
उन खुशनुमा बचपन को दोहराने को
जी चाहता है
इसे चंद अल्फाजों में बयाँ करने को
ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाया
कंधे पर बैठा पूरा शहर घुमाया
सारी खुशियों की चाबी हो तुम
हर मौसम में राबी हो तुम
तुझसे ही मेरी पहचान है आई
तुझमे ही मेरी शक्शियत है समाई
याद है मुझे वो पुरानी साइकिल,
जिस पर बैठ कर स्कूल जाया करते थे
जिसे देख हँसते थे बच्चे,
याद है वो दिन
जब सूरज से जल्दी
उठने की रेस लगाया करते थे ।
शहर भी वक्त से पहुँचाया करते थे ।
छुट्टिया होती थी जब कभी
तो गाड़ियों की आवाज पर
कान टिका करते थे
कहीं वो पापा तो नहीं
ये सोच कर नज़रे दरवाजे पर रहा करती थी
इंतज़ार में साँझ हो जाया करती थी,
घर जाने की जल्दी जो हुआ करती थी,
कैसे चेहरे पर,
मुस्कान आ जाया करती थी ।
जेब खाली
पर दिल सवाली
फिर भी हर हाल में ख़ुशहाली
जब सफ़र पर निकलते थे
घर से शहर,शहर से घर
आँख बंद कर गिनती गिना करते थे
पहुँच जाऊ मै सही सलामत,
ये दुआ किया करते थे ।।
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