तुम जैसी भी हो ,आज भी पसंद हो मुझे।
तुम्हारी वो कातिलाना मुस्कान,
तुम्हारी वो बातों की दुकान,
सब याद है मुझे,
अब ये यादें दिल से गुज़र कर,
बस यहीं कहती रहती है,
लौट आओ फिर से इस ज़िन्दगी में,
इसी फ़िराक़ में धड़कने तेज चलती रहती है,
और बयां क्या करे दिल्लगी में।
तुम जैसी भी हो,आज भी पसंद हो मुझे ।
तेरी बातों का असर कुछ ऐसा था,
मेरा अल्फ़ाज़ तेरी आवाज़ जैसा था।
जो नजरों को न दिखे, वो ख्वाब बन गये हो तुम।
जिसकी कमी सी लगे, ऐसे लाज़वाब बन गये हो तुम।
तुम जैसी भी हो,आज भी पसंद हो मुझे ।
तुम जैसी भी हो,आज भी पसंद हो मुझे ।
तेरी ख़ुशी के लिए, हर रास्ते पर चला हूँ
हर पल, हर गम में, तेरी यादों में पला हूँ
चलो छोड़ो ये बाते,
आओ महफ़िल को जमाते।
लौट आओ अब,
इस बेरंग जीवन में ,रंगों से भर दो मुझे।
तुम जैसी भी हो,आज भी पसंद हो मुझे ।
तुम जैसी भी हो,आज भी पसंद हो मुझे ।
कैसे करू इजहार अपनी मोहब्बत का।
डरता हूँ,कहीं टूट न जाये वायदा ए दोस्ती का।
वक़्त के मोड़ पर,
एक तेरा ईशारा,
एक आँखों में हज़ार सपनो का पिटारा ।
बेबाक सा मन ये,
अंजान अकेले रास्ते चुने ।
नादान ये आँखे,
बेख़ौफ़, मुश्किल ख्वाब बुने ।
इंतज़ार में हूं,बस इतना मालूम हो तुझे।
तुम जैसी भी हो, आज भी पसंद हो मुझे।।
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