कुछ बातें बतानी ज़रूरी सी हो गयीं है
कुछ बातें बतानी ज़रूरी सी हो गयी है
कुछ लफ़्ज़ों से इनायत सी हो गयी है
आज भी जब वो शब्द गूंजते है इन कानो में
तो लगता है जैसे वो बीते लम्हे,कल की ही बात हो
इस क़दर उनकी आदत सी हो गयी है ,
जब से होश सभाला है ,खुद को आज़ाद समझता हूँ मैं
मानो परिंदो को मिल गया उनके ख्वाब का खजाना
अब तो ये फितूर भी बन गया है पासबान मेरा
जो अश्क़ के क़तरों से भर दे पैमाना
जो बेवजह ही भरते है जुर्माना मेरा
मुझे उस क़िस्से से नफरत सी हो गयी है
कुछ बातें बतानी ज़रूरी सी हो गयी है
झूठे वादों में उलझा था मै
मुझे याद है वो बारिश
जिसमे कोई आहट सी होती थी
और जब नज़रे भीगते ही
मन में जज्बातों की सरसराहट सी होती थी
दिल में छप जाते है कुछ अफ़साने
मानो किसी रंजिश में हो ये बादल सारे
जैसे मिल गए हो भीगे इंसान को आशियाने
वो बारिश की बूंदे सुनाती है कुछ सुकून-ऐ-दास्ताँ
मिल जाता है रूह को इख़्तियार
फ़िज़ूल सी हो जाती वो क़ासिद-ऐ-क़तार
बिन बोले जब समझ जाते है लफ्ज़ तुम्हारे
याद आने लगते कुछ मीठे तराने
कुछ बातें बतानी ज़रूरी सी हो गयी है
इस दिखावे के अपनेपन से थक चूका हूँ मै
राहत सी मिलती है इस दिल को ,
जब कोई कहता है
अभी और भी रास्ते बाकी है मंज़िल के
आएगा वो वक़्त भी ,
जब होगा अपना भी उन रास्तों में क़ाफ़िला
मुनासिब है ,साथ हमारा
जब भी होगा कोई मुश्किल -ऐ -मुक़ाबला
महफ़िल-ऐ-रंगत होगी,हसींन सा होगा ये आश्मान
बस उम्मीद ऐ ज़िक्र हो,सलामत रहे इसकी शमां
कुछ बातें बतानी ज़रूरी सी हो गयी है .
अधूरे रह गए मेरे अलफ़ाज़
मै इंतज़ार की घड़ी में सिमट सा गया
न जाने कब दिन,रात में ढल सा गया
ख्वाब-ऐ-जन्नत में जीता चला गया
कुछ बातें बतानी ज़रूरी सी हो गयी है
कुछ खता बाकी है जो बंदिश सी हो गयी है
वो बातें बतानी ज़रूरी सी हो गयी है ....
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