"हौसला एक पर्वत है
जुनून से चढ़ शिखर
रघों में बहता समुंदर है
बस उसका मोती बन निखर"
परिंदों जैसी उड़ान रहे जब
फिर दर दर क्यों भटक रहे सब
इल्म की कश्ती को जान लो
किस्मत की पहेलियों से उभरकर
दमक रहा नायाब हो ऐसा हुनर रहे अब,
ईसे तुम पहचान लो ।
कहीं गम कहीं खुशियाँ
सब देख रहे रब,
दुख में भी सुख है
सुख में भी दुख है
खुद में ही ख़ुदा है,
ये तुम मान लो ।
हम दर्द से जुदा है,
दर्द हम से जुदा है,
बस ठान लो ।
हम शब्दों के पूल बाँध तो रहे है
लेकिन अहसासों का तूफान कैसे रोके?
हम इरादों को बुलंद तो कर रहे है
मगर अहंकार को आग में कैसे झोकें ?
इन सवालों के जवाब को,
अरमानों में तब्दील होने का गुमान लो ।।
(*इल्म = ज्ञान)
(*इल्म = ज्ञान)
Comments
Post a Comment