"बंजारों की क्या ख्वाइश,
महल खड़ा करने की ।
वो ज़िम्मेदार है,इंतज़ार करते है,
उम्मीद है उन्हें,बारिश के ठहरने की ।
वो खुद्दार है,लगे रहते है,
उनका मुकाम-ए-मकसद है,कुछ बड़ा करने की । "
बल और लगाएंगे,
मंज़िल की राह पर गिराने वाले ।
छल और अपनाएंगे,
गलत हिदायतें देने वाले ।
नकाब कहाँ हटाएंगे,
चेहरा छुपाने वाले।
फरेबियत और जगायेंगे
शराफत की मिशाल कहे जाने वाले ।।
पल में रोयेंगे,
पल में मुसकुरायेंगे,
तमाम, दास्तान-ए-शुजाअत सुनने वाले।
कल और आएँगे,
नगमों से खिलती कलियाँ चुनने वाले ।
हमसे बेहतर करने वाले,
तुमसे बेहतर करने वाले ।
कल से बेहतर करने वाले,
आज से बेहतर करने वाले।।
मगर,हल कोई न बताएंगे,
न सफर में हाथ देने वाले,
न समर में सिद्धार्थ बनने वाले ।
साया के साथ चलने वाले,
माया के साथ चलने वाले ।।
*समर-लड़ाई
*शुजाअत-वीरता
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