शायद कुछ अधूरा सा हूँ मैं
कुछ आवाज़े है जो इस सन्नाटे में सोने नहीं देती
मन की बातें जीने नहीं देती
वक़्त की तेज़ रफ़्तार में रोने नहीं देती
शायद कुछ अधूरा सा हूँ अभी
वो मुक़ाम इ महफ़िल ढूंढ़ता था कभी
अब धुंदले से हो गए है वो नज़ारे
जिन्हे काटों से बचाते थे सारे
शायद कुछ अधूरा सा हूँ मै
उन किस्सों में हमारी कोई बात नहीं होती
भुला बैठे है अपने ही अपनों को
गैरों में तो औकात नहीं होती
शायद कुछ अधूरा सा हूँ मैं
दिल की आवाज़
पूंछती है क्या हाल है मेरा
पुराने दर्द जो उभर आते है
मरहम से भरे कुछ गीतों में
उन पुराने नगमों से सवार जाते है
हर एक सांस में बसा है क़िस्सा तेरा
थोड़ी धुप और थोड़ी छाव है हिस्सा मेरा
शायद कुछ अधूरा सा हूँ मैं
आसमान पूछे बादल से
क्यों रुख मोड़ लिए इन सर्द हवाओं ने
कब से रहे पुकार
बारिश की चाहत है इस बार
धरती और अम्बर का प्यार ,अपार
महीनो अब मुलाक़ात नहीं होती
कहीं यादों का मेला,
कहीं गुमनाम सा अकेला
रूह की प्यास में फिरता दरबदर
अजनबी ख्वाबो में डूबा तरबतर
पतझड़ में चीखों की गूंज
बंजर जमीन में सर्मसार
कहे हर बार
बेखबर किसी फ़िराक में
अनजान विचारों से डरा हूँ मै
शायद कुछ अधूरा सा हूँ मै
आसमान से गिरा परिंदा हूँ मै
फिर भी हर हाल मैं ज़िंदा हूँ मै
इन हाथ की लकीरों से सर्मिन्दा हूँ मै
शायद कुछ अधूरा सा हूँ मै
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