ये धूप कान में कुछ फुसफुसाती है,
कोई पुरानी बात याद दिलाती है,
मैं इसे समझ नहीं पाता।
ये हवाएं भी रूह को जगाती है,
अपने वजूद का एहसास दिलाती है,
मैं इसे समझ नहीं पाता।
ये परिंदों की चहचहाहट भी क्या गज़ब ढाती है,
मानो इनकी टोली कोई मधुर गीत सुनाती है,
पर मैं इसे समझ नहीं पाता।
ये आसमां की चादर सबको सुलाती है,
देर रात नींद से मीठी बातें करती है,
और ख़्वाब को पास बुलाती है,
फिर ,चाँद तारों की महफ़िल में शामिल हो जाती है,
सर्द में जब सड़कों पर मासूमों को देखती है,
अश्कों की बारिश में भीग जाती है ,
पर मैं इसे समझ नहीं पाता ।
ये अधूरी कहानी एक गाँव दिखाती है
जहां की मिट्टी भी सुगंध छोड़ जाती है
ज़िंदा हूँ, उन सांसों में,
जो ग़ुमराह है किसी शहर में,
वही जीने की वजह बन जाती है,
पर मैं इसे समझ नहीं पाता ।
Bjwaa
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