किस्मत ने पूछा मैं कौन हूँ?
मैंने बोला, मैं वही "जॉन" हूँ
जिसकी तलाश में मैं कब से मौन हूँ।
वो सन्नाटे में छिपी मंज़िल है,
जिसका कोई नहीं साहिल है,
शामिल नहीं कहीं, मैं ऐसा सुकून हूँ ।
मैं कबसे कह रहा, मैं वही "जॉन" हूँ।
काश! में खोया ,मैं कब से मौन हूँ।।
जिसका अहसास है इन हवाओं में,
वो अज़नबी साज़िशें लगती है,
अब अधूरी आस है इन दुआओं में ।
जो तहज़ीब होती है नवाबों में,
वो खो गयी है कहीं ख़्वाबों में ।
बाज़ार ए महफ़िल में धुल गया हूँ।
ज़िन्दगी जी ने का सलीका भूल गया हूँ।।
मैं रिहा होना चाहता हूँ,
कुछ मनमानी,ज़िद्दी विचारों से,
गुनाहों में दर्ज नाम कितने है।
संभल के रहना मुमकिन नहीं,
अब मुझ पर इल्ज़ाम इतने है।
काफ़िला लेकर कैसे चलूँ मैं ?,
हर मोड़ पर इंतेज़ाम रखने है।
आगे कैसे बढूं मैं,
हर शहर में इन्तेक़ाम दिखने है।।
मैं फिर दोहराता हूँ, मैं वही जॉन हूँ।
ख़्वाबों में जीता जागता मैं वही इंसान हूँ।।
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