हरी चादर में लिपटी प्रकृति
कल मुस्कुरा रही थी ,
आज पूछा हालात क्या है ?
नम आंखों से,
अपना दर्द छुपा रही थी ।
फिर पूछा बात क्या है ?
भीगे लबों से,
अपने जज्बात बता रही थी ।
हवा से बात हुई थी कभी
आज रूठी है इस कदर
कि रूह बन कर
बादल की पनाह में जा रही थी ।
कल की बारिश
आज तूफान ला रही थी ।
अस्त व्यस्त हो चला जीवन
कई मासूमों की जान जा रही थी ।
छिन गयी ज़िन्दगी हज़ारों की
बेघर हुए सड़कों पर कुदरत,
खामोशी लिए बाज़ारों की ,
अब ये दरकार की पुकार है
चंद दिनों में उम्मीद की फुहार है
उनके लिए मरहम ये सरकार है
धीरे-धीरे जिंदगी में वापस निखार है
कुछ दिन बाद देखा,
समाज की मदद से अनाज पा रही थी ।
सुकून से अब प्रक्रति, इलाज करा रही थी ।।
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