रोशनी और अंधेरा,अलग एक दूसरे से
फिर भी दोनों का वजूद एक दूसरे से ।
सूरज की रोशनी,
जब ओस की बूंदों पर पड़ी,
किरणें उसकी मोती सी चमक उठी ।
चाँद की चाँदनी,
जब अँधेरे को चीर कर
घर के आँगन पर पड़ी,
चिराग की लौ से दमक उठी ।
अब आसमाँ में चाँद पूरा था
लेकिन एक अहसास अधूरा था
दफ़न मिट्टी में जो राज थे
वो घाव बन कर उभरे आज थे
कल की हवाओं ने रुख मोड़ लिया था,
ऐसे घने बादल में तारे नज़रअंदाज़ थे ।
शायद सितारों की है जासूसी,
या फिर आसमाँ की है मायूसी ।
कभी शीत लहरों में नींद चुराते है,
कहीं वक़्त की खामोशी को सताते है,
इसीलिए बादल में छुपे कुछ अश्क,दर्द बरसाते है,
चलो कल फिर इसकी वजह अजमाते है ।।
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