गर्मी में पानी का मोल अमृत से कुछ ऐसे कर डाला
पास रहकर भी दूर लगने लगी है पाठशाला।
अपनापन सा लगता है अब तो इन चारदीवारों में
रूह को सुकून,पथिक को राहत
गरजते बादल,बारिश की चाहत
धूप में छाया,ठंडी हवा का साया,
मौसम के मिजाज में हो ऐसी इबादत
जैसे डॉ° हरिवंश राय बच्चन की "मधुशाला"।।
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