अब कुछ ख़ास नहीं सुनाने को..
अब नई नस्लें सिखाएंगी ,
प्यार के फ़साने को..
रूह और जिस्म का फर्क नहीं ,
इंसान और बाजारु चीज़ से तर्क नहीं,
इस नए ज़माने को।
चले है इश्क़ का पाठ पढ़ाने को।
अभी पंख लगे नहीं मस्ताने को।
और बात करते है,
आसमां से तारे तोड़ लाने को।
डरते है ये,
खुद को दाव पर लगाने को।
ये अंजान,बिन डोर पतंगे उड़ाने को।
ये इंसान,बस नाम-ए-शाम कमाने को।
गली और गालियों से वाकिफ़ है ये,
मग़र दिल में प्यार नहीं जताने को।
जिनके जहन में नहीं,सच सुनाने को।
वो भी मोहब्बत की धुन गुंनगुनाने को।
अब कुछ ख़ास नहीं सुनाने को..
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