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Showing posts from June, 2018

हे पथिक, तू है निराश क्यों

हे पथिक, तू है निराश क्यों चार दिन की ज़िन्दगी फिर क्यों नफरत की गंदगी ख्वाइशो को काबू कर ख्वाब को मुकम्मल कर दिखावे से दूर, अपना ले सादगी हे पथिक, तू है हताश क्यों तू है काबिल हर मोड़ पर बस छुपी ताकत को जान ले हर दिशा को तू पहचान ले हर मुकाम लगे आसान खुद को ऐसे निहार ले बची हुई ज़िन्दगी सवाँर ले मौत है सबकी मुन्तजिर फिर मरने की है आस क्यों जुबां से न कर खुद को ज़ाहिर हर चुनोतियों में हो हाज़िर बना ले सोच को ऐसे ताहिर लफ़्ज़ों का त्यौहार मना कलम को हथियार बना हे पथिक,तू है खामोश क्यों अपने आशियाँ की खोज में दर बदर भटक रहा क्यों, रख हौसला , है चंद फासला इंसानियत की मिशाल बन कमजोरों की तू ढाल बन क्रोध का कर विनाश यूँ हे पथिक,तुझे है तलाश क्यों

शब्द कहाँ से लाऊं

जो दिल से लिखे थे अल्फ़ाज़ मैंने मिट गये वो इस मगरूर से लोगो को गिराने में , अहसानों में दब गयी आवाज मेरी अब सुनाने के लिए वो शब्द कहाँ से लाऊं । यादों में बह चला है मुसाफिर चंद दूर थी मंजिल, बस साहस की कमी रह गयी खुद को समझ पाना मुश्किल तो नहीं पर अब धुन्दला सा देखे ये नज़र शायद आंखों में नमी रह गयी मुश्किल है राहें,  उनमे चलने के हालात कहाँ से लाऊं । अब वो दौर कहां श्रोताओं का शौक़ीन जमाना ये नेताओं का ऐसे बेरंग दिनों में जुबां पर वो बात कहाँ से लाऊं। कुछ नज्मे बचा कर रखी थी मैंने सोचा था फुर्सत ए महफ़िल में सुनाऊंगा निराश मन से काबिलियत और हुनर ये छिपाऊँगा  जो दर्द बचा है सीने में उसे बयाँ करने के लिए वो जज्बात कहां से लाऊं ।

प्रेम

तुम्हारी बातों की मिठास में, खुद को भिगोने आया हूँ, तुम्हारे गीतों के रस में, खुद को डुबोने आया हूँ | गर इलज़ाम है तुझको  तो ज़िक्र दूसरों से न करना  खिलाफ है दुनिया यहाँ  मै सागर से ऐसा मोती चुरा लाया  हूँ | झूठी ये तकदीरे  कोई फरेबियत नहीं इन आंखों की  उलझी सी लकीरे, इन हाथों की  वक़्त बेवक़्त इनको सुलझाने आया हूँ.| खफा हो खुदा भी अगर मै कुछ पल की ज़िन्दगी सवारने आया  हूँ | दिल में  प्यार,सपनों का संसार मै  जन्मों का साथ निभाने आया हूँ| तेरे दर्द की साजिश में, तेरे अश्कों की बारिश में मै खुद को भिगोने आया हूँ | भीनी-भीनी खुश्बूं बरसाती मिट्टी की  बरसात में उसका इत्र बनकर  तुझमे संजोने आया  हूँ | जीने का मक़सद समझ आया नहीं मगर, फिर भी  दूसरों  की तकलीफ समझने आया  हूँ | नफरतों में बंद जो मुस्काने है उनको आज़ाद कर मै प्यार का बीज बोने आया हूँ  ||

शायद कुछ अधूरा सा हूँ मैं

शायद कुछ अधूरा सा हूँ मैं   कुछ आवाज़े है जो इस  सन्नाटे में सोने नहीं देती  मन की बातें जीने नहीं देती  वक़्त की तेज़ रफ़्तार में रोने नहीं देती  शायद कुछ अधूरा सा हूँ अभी  वो मुक़ाम इ महफ़िल ढूंढ़ता था कभी  अब धुंदले से हो गए है वो नज़ारे  जिन्हे काटों से बचाते थे सारे  शायद कुछ अधूरा सा हूँ  मै उन किस्सों में हमारी कोई बात नहीं होती  भुला बैठे है अपने ही अपनों  को  गैरों में तो औकात नहीं होती  शायद कुछ अधूरा सा हूँ  मैं  दिल की आवाज़  पूंछती है क्या हाल है मेरा  पुराने दर्द जो उभर आते है  मरहम से भरे कुछ गीतों में  उन पुराने नगमों से सवार जाते  है  हर एक सांस में बसा है क़िस्सा  तेरा  थोड़ी धुप और थोड़ी छाव है हिस्सा मेरा  शायद कुछ अधूरा सा हूँ मैं  आसमान पूछे बादल से  क्यों रुख मोड़ लिए इन सर्द हवाओं ने  कब से रहे पुकार  बारिश की चाहत है इस बार  धरती और अम्बर का प्यार ,अपार  मह...

किताबों सा साथी

किताबों सा साथी, सच्चा सहपाठी | हैरत में है ये तलाश,  कहाँ गुमशुम है  ये विलुप्त प्रजाति || बेचैन रहती हैं ये बंद क़िताबें महीनो अब मुलाक़ात नहीं होती| आज मसरूफ रहकर भी किताबों से  पन्नो में दर्द लिए, खुशनुमा प्रभात नहीं  होती | जो किस्से और खबरे वो सुनाती थी, इनके लफ़्ज़ों  में हयात नहीं  होती|  जो रिश्ते वो दिखलाती थी, ख़ामोशी  में भी रूह को फरहात नहीं होती| जो शामें उनकी आदत में टिका करती थी कभी, आज नज़रें मिलने पर बिन बादल बरसात नहीं  होती| अब उनमे डूब कर भी लम्बी रात नहीं होती, आज किताबी मुस्कान में वो खुरापात नहीं होती| दिल को छू जाये जो अल्फ़ाज़ , शब्दों के खेल में वो बात नहीं होती |