"असुरक्षित गुड़िया"
दुनिया के मेले में गुम सी गुड़िया,
खिलौने की ज़िद में नम सी गुड़िया।
माँ का आंचल छोड़,
पिता की उंगली पकड़ कर चलती गुड़िया।
समाज के ताने सुन कर,
कानों को बंद करती गुड़िया।
हल्का करती बाप का बोझ गुड़िया।
खैरियत पूछती माँ का रोज गुड़िया।
दहेज के भाव में बिकती गुड़िया।
चूल्हे की आंच में सिकती गुड़िया।
कठपुतली सी नाचती गुड़िया।
खुद को नियमों से बांधती गुड़िया।
सबको हाल सुनाती गुड़िया।
ज़िंदगी फ़िलहाल बिताती गुड़िया।
"तुम्हें हर कोई घूरता है ऐसे,
सागर की सीपों का मोती हो जैसे।
न जाने तुम कोख में बेखौफ़ सोती हो कैसे।।"
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