तुम्हारी हर बात का जवाब दूँगा
तुम्हारे और मेरे हालात का रुबाब दूँगा
मिल जाये गर तू कभी अब,
तुझसे एक-एक अश्क़ का हिसाब लूँगा ।।
तकलीफ क्या होती है
तुझे अपने ग़मों का ख़िताब दूँगा ।।
ये दिल से जो अल्फ़ाज़ निकलते है मेरे
उसका हर कतरा इश्क़-ए-आसाब दूँगा।।
जो शब्द कहे थे तूने कि "पैसा ही सबकुछ है"
मैं भी उलझ गया,
उसकी जुबान को पत्थर की लकीर समझ गया ।
मैं सोचता था शायद इसमें भी
चलो किसी का फ़ायदा होगा ।
पर क्या पता था
तुझमें तेरा अलग ही कायदा होगा ।।
शायद अब मायने बदल गए समझने के,
वो सुदामा-कृष्ण की दोस्ती का प्रेम
वो राधा-कृष्ण का प्रेम
प्रेम की परिभाषा में वो गीत गाते थे
ज़रा सी मुस्कान पर फिसल जाते थे
माना कि हम हैसियत में कच्चे थे,
अरे कम से कम हम उनसे तो अच्छे थे
जो आवारागर्दी और गालियों पर उतर आते थे।
सूरत से नहीं, सीरत से प्यार था मुझे
फिर क्यों इंसानियत से इंनकार था तुझे
जैसा भी था प्यार,अपार था मुझे
तुमनें "सिर्फ दोस्त" के नाम का
मतलब निकाला था मुझसे
सीधा बोल देती,"व्यापार था तुझसे"
आज पलटता हूँ जब ज़िन्दगी के पन्ने
याद आते है वो पल
कैसे बांधता था मैं टूटी पतंग के कन्ने
पता नहीं था साथ देगी ये हवाओं का
फिर भी एक विश्वास था फ़िज़ाओं का
शायद मतलब ही कुछ और होगा
तेरी भाषा में प्रेम का
तेरे इश्क़ को पैसे की आदत थी
मेरे लिए तो,
प्रेम में इतनी ताकत थी
जो राम नाम के पत्थर तैरा देती थी
माँ के निस्वार्थ भाव को,दुआओं में मिला देती थी ।
तरसेगी मिलने को, मैं ऐसा ख़्वाब दूँगा
तुझको तेरे ही गम का सैलाब दूँगा ।
नाम छपा होगा मेरा जिसमे
मैं वो तुझे ऐसी किताब दूँगा ,
जो पहली मुलाकात में फूल दिया था तुमने
उस किताब में वो मुरझाया हुआ गुलाब दूँगा,
रोने पर जब सिसकियाँ आएगी तेरे
शिद्दत से तुझे आब दूँगा ,
मैं खुश हूं,रहा हूँ और रहूँगा
तेरी शादी पर तोहफे लाजवाब दूँगा।
मैं मैं ही था,रहा हूँ और रहूँगा,
तुम बदल गयी,
ये कहता फिरूँगा ।।
मैं मैं ही था,रहा हूँ,रहूँगा,
तुम बदल गयी
ये कहता फिरूँगा ।।
(*रुबाब-प्रभाव/शान
*आब - पानी
*आसाब : नब्ज़)
*आब - पानी
*आसाब : नब्ज़)
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