Skip to main content

Posts

Showing posts from August, 2018

रोशनी और अंधेरा

रोशनी और अंधेरा,अलग एक दूसरे से फिर भी दोनों का वजूद एक दूसरे से । सूरज की रोशनी, जब ओस की बूंदों पर पड़ी, किरणें उसकी मोती सी चमक उठी । चाँद की चाँदनी, जब अँधेरे को चीर कर घर के आँगन पर पड़ी, चिराग की लौ से दमक उठी । अब आसमाँ में चाँद पूरा था लेकिन एक अहसास अधूरा था दफ़न मिट्टी में जो राज थे वो घाव बन कर उभरे आज थे कल की हवाओं ने रुख मोड़ लिया था, ऐसे घने बादल में तारे नज़रअंदाज़ थे । शायद सितारों की है जासूसी, या फिर आसमाँ की है मायूसी । कभी शीत लहरों में नींद चुराते है, कहीं वक़्त की खामोशी को सताते है, इसीलिए बादल में छुपे कुछ अश्क,दर्द बरसाते है, चलो कल फिर इसकी वजह अजमाते है ।।

प्रकृति का सच (Truth of Nature)

हरी चादर में लिपटी प्रकृति कल मुस्कुरा रही थी , आज पूछा हालात क्या है ? नम आंखों से, अपना दर्द छुपा रही थी । फिर पूछा बात क्या है ? भीगे लबों से, अपने जज्बात बता रही थी । हवा से बात हुई थी कभी आज रूठी है इस कदर कि रूह बन कर बादल की पनाह में जा रही थी । कल की बारिश आज तूफान ला रही थी । अस्त व्यस्त हो चला जीवन कई मासूमों की जान जा रही थी । छिन गयी ज़िन्दगी हज़ारों की बेघर हुए सड़कों पर कुदरत, खामोशी लिए बाज़ारों की , अब ये दरकार की पुकार है चंद दिनों में उम्मीद की फुहार है उनके लिए मरहम ये सरकार है धीरे-धीरे जिंदगी में वापस निखार है कुछ दिन बाद देखा, समाज की मदद से अनाज पा रही थी । सुकून से अब प्रक्रति, इलाज करा रही थी ।।

मेरा देश संभल रहा है

मेरा देश संभल रहा है मेरा देश बदल रहा है है हौसला,जीतूंगा या मरूँगा मैं अपने लहराते तिरंगे की कसम इसका मान सदैव बनाये रखूंगा मैं अपने देश का हर नागरिक प्यारा है बस एक ख्वाइश हँस के गवारा है मौत गर आ जाये तो आंखों में नमी न हो देश में शूरवीरों की कमी न हो बस एक तमन्ना है मेरी अपने ही अपनो में दंगा न हो बस कफन की जगह तिरंगा हो अंत तक होंठो पर गंगा हो । है हौसला, जीतूँगा या मरूँगा मै अपने देश को राजनीतिक खेल से दूर करूँगा मैं । देश को भ्रष्टाचार और अत्याचार से आजाद करूँगा मैं। मिट जाऊंगा मगर, इस देश को कभी गिरने न दूंगा ध्वज को कभी मिट्टी में मिलने न दूंगा । स्वंत्रता के पैगाम को मैं आपको सुना रहा हूँ खुद से एक वादा निभा रहा हूँ जागो देश के नौजवानों, नया सवेरा ला रहा हूँ सुने होंगे आपने भी कई ऐसे भाषण श्रोताओं में उम्मीद बाटते और बाटते राशन आजाद तो हो गया अपना देश पर कुछ बंधन से मुक्त नही है अपना देश जानवर भी सुरक्षित नही जहाँ आम नागरिक कैसे हो उपस्थित वहाँ । भारत की झोली में फूल है जो मुरझा गए है, कुछ अधूरी दास्तां समझा गए...