ख्वाबी परिंदे तलबगार हूँ उन लफ़्ज़ों का जो ख़त से निकलते थे कभी बनकर कोई मशीयत भरे अलफ़ाज़ आज रहे गए बन कर सिर्फ आवाज़ आसमां से टूटते सितारे ऐसे फलक से उतरे हो कई परिंदे जैसे जिन्हे उड़ते देख ख्वाइशें पूरी होती वैसे ए खुदा बख़्श दे इन परिंदों को जिनकी पूरी न होती आज़ादी की मुराद भूल बैठा हूँ कुछ अफ़साने मुक़्क़मल हो जाता है तराने जब शुरू होता है इनका आग़ाज़ यही क्या कम है ,जब होता है लिहाज़ जिनकी इबादत में ही होके मशहूर खो गया हूँ इस क़दर चढ़ गया इसका फितूर अधूरी सी है ज़िन्दगी की एहमियत भूल बैठा वो शिद्दत और जुनूनीयत मुश्किल से मिलते है मोती समंदर में खामोश लगती है इनकी गहराईयां तलब है,रग़बत है, मेरे दरमियाँ दर्द में मशरूफ है इनका क़ाफ़िला ढूँढ़ते रहे तदबीर बनाकर कोई फलसफा
"Sometimes it takes a whole life time to know someone.